लगता है कोरोना अब जाने लगा है

 लगता है कोरोना अब जाने लगा है


बेचैनी सी हर तरफ छाने लगी है 

बंदिशें अब यंत्रणा लगने लगी है 

बादल निराशा के गहराने लगे हैं 

सड़कों पर वाहन फिर बजबजाने लगे हैं 

घर का भोजन बेस्वादु अब लगने लगा है 

लगता है कोरोना अब जाने लगा है। 


बड़े दिनों के बाद नज़ारे बदलने लगे हैं 

बत्तियों पर कतारें पुनः दिखने लगी हैं 

पटरियों पर रेहड़ियाँ उगने लगी हैं 

गुटकों की पिचकारियाँ बिखरने लगी हैं 

स्वच्छता का मान-मर्दन आम होने लगा है 

लगता है कोरोना अब जाने लगा है।


बीमारी के आँकड़े उलझाने लगे हैं 

नुस्खे नये-पुराने कई आजमाने लगे हैं 

अनावश्यक जुटाई दवाइयाँ पुरानी पड़ने लगी हैं 

मोबाइल की बैटरियाँ चुकने लगी हैं 

मास्क फिसलकर गर्दन पर अटकने लगा है 

लगता है कोरोना अब जाने लगा है।


मंदिरों के दरवाजे भी खुलने लगे हैं 

डरे-सहमे भक्त दर्शन को जुटने लगे हैं 

पुलिस के तेवर पुराने दिखने लगे हैं 

बाइक वाले को बगल में बुलाने लगे हैं 

कमाई का दिन पुराना लौटने लगा है 

लगता है कोरोना अब जाने लगा है।


बच्चों की शरारतें डराने लगी हैं 

मायें अब बच्चों पर चिल्लाने लगी हैं 

धीरज बाप का भी चुकने लगा है 

छूटे काम के भय से थरथराने लगा है 

महँगाई का डर फिर से सताने लगा है 

लगता है कोरोना अब जाने लगा है।


पलायन - दोहे

दिनांक : 16 मई 2020 / शनिवार
⭐ दोहे ⭐

जग बीती में है निहित, निज दुख का भी मूल।
समझ मनुज इस सत्य को, वरना होगी  भूल।।

बैठ रहे हम  आस  में,  धरे  हाथ  पर हाथ।
कहो भला कैसे मिले, लिखा विधाता माथ।।

श्वान गली में भौंकता,  ढूँढ  रहा  आहार।
मगर उसे मिलता नहीं, हड्डी का उपहार।।

लौट चले जो लोग हैं,  साथ  लिए परिवार।
सफर कोस का है नहीं, जाना मील हजार।।

एक साइकिल के  लिए,  बेचे  बुधुआ चेन।
हर पैडल पर सोचता, किसकी है यह देन।।

हाथ झटक मालिक गया,  देने  को न पगार।
लौट चले फिर गाँव को, श्रमिक कई लाचार।।

पैरों  में  छाले   पड़े,  मगर  नहीं  परवाह।
कोरोना के बस नहीं, ले हिम्मत की थाह।।

पैदल उसको  देखकर,  रखना  बरबस  याद।
डाल रहा था कल वही, भविष्य की बुनियाद।।


कष्ट हरो करतार

चित्राधारित रचना

सरसी छंद


हम अबोध हैं  सुनो  हमारी, आज यही अरदास।

कोई न अपना इस जगत में, तुम ही आओ पास ।।


भूल-चूक सब माफ करो तुम, कृपा-सिंधु भगवान ।

हरो विधाता कष्ट सभी अब, लिया बहुत बलिदान ।।


हम अबोध जाने क्या किसके, हाथों हुआ गुनाह ।

हाथ जोड़ प्रभु के सम्मुख हम, रो-रो भरते आह ।।


सही-गलत को तुम ही जानो, हम बालक अंजान।

मात-पिता के बिना जगत यह, कष्टों की है खान ॥


दया करो हे महा-प्रभो अब, दे दो तुम वरदान।

अश्रु-जल से हम करते तर्पण, तुमको दया-निधान॥


हे सर्वज्ञानी, सर्वव्यापी, जीवन के आधार।

बीच भँवर में भटक रही है, कर दो नैया पार॥


पितु-मातु को लिया शरण में, बालक करे पुकार।

बतलाओ अब तुम ही प्रभुजी, क्यों है कष्ट अपार॥

इस रिश्ते का क्या नाम दूँ

तुम ही बतला दो मुझे, इस रिश्ते का क्या नाम दूँ
सुबह निछावर हो जिसपर, उसको ही हर शाम दूँ

जीवन पथ पर अगणित मिलते, मिलकर मुस्काते हैं
पड़े जरूरत पालक झपकते, गुम जो हो जाते हैं
क्षणभंगुर से बीते पल को, कह कैसे अभिराम दूँ

सम्मुख हों तो कब मिलता है, बोलो सम्मान यहाँ
रहकर दूर भी कब होता है, कहो सुनसान यहाँ
सतत भटकते इस दिल को, कैसे मैं आराम दूँ

सस्ता, सुंदर और टिकाऊ, जो ढूंढते हैं अक्सर
रख देते वे अरमान को, गहनों से खूब सजाकर
उनके जख्मों का कह दो, अब मैं क्या ईनाम दूँ 

कोरोना - मेड-इन-चाइना

आई अजब बीमारी, मेड-इन-चाइना, कोरोना-ओ- कोरोना
मैं तो घर में बंद हूँ, तुम भी बंद रहो ना 
बड़ी भयावह जंग है, मिलकर सभी लड़ो ना 

सबके हित की बात यही है, मानो मोदी का कहना 
चाहे कुछ भी जो जाये, बाहर घर से कदम न रखना 
अगर जरूरत पड़ ही जाये, बस टेलीफोन करो ना 

आज भले ही दवा नहीं है, लेकिन कल आएगा 
कोरोना का यह कहर देश से, निश्चित डर के भागेगा 
समस्त विश्व में फ़ैल रही, नॉवल वायरस कोरोना 

दम साधे रहना मेरे भाई, चंद दिनों की बात है 
रोकथाम आसान बहुत है, बस रहना घर दिन-रात है 

साफ़ करो सब हाथ ठीक से, रहकर दूर भगाओ ना

ग़ज़ल - कहाँ से चले थे कहाँ आ गए हैं

कहाँ से चले थे कहाँ आ गए हैं
जमाने में देखो ग़ज़ब ढा गए हैं

सताया करें जो सदा ही किसी को
कहर बन के उनपर तभी छ गए हैं

कहा था किसी ने दिखाओ जरा दम
लुटाकर दिलो जान शरमा गए हैं

निगाहें चुरा के अदा जो दिखाते
सभी को पता है किसे भा गए हैं

कहाँ की कहो बात अब हो रही है
सुना है बदल फिर से पाला गए हैं

न थकते कभी थे मुझे देखकर जो
वही आज करके बहाना गए हैं

शिकायत न करना किसी से कभी भी 
सुनी'ल आज का सच बतला गए हैं

नवरात्रि व नवसंवत्सर

नव-संवत यह साल नया है, अम्बर का नव चोला है
रंग में रंगकर भक्ती के, माता-माता बोला है  

बदला-बदला जग सारा है, माँ को तभी पुकारा है
बोलो अम्बे पूछ रहा मन, क्योंकर किया किनारा है 
बार-बार मन भटक रहा है, देखो कितना भोला है 
नव-संवत यह साल नया है, अम्बर का नव चोला है

शुद्ध करो मन कष्ट मिटे सब, जग ने तुझे पुकारा है 
चंचल मन यह उड़ते-उड़ते, अब तो थककर हारा है   
किस दर को मैं जाऊँ अब तो, रहने को घर बोला है 
नव-संवत यह साल नया है, अम्बर का नव चोला है

चूक कहाँ पर हुई जगत से, अब तो कोई यह बोले 
भेद तिमिर के एक-एककर, उलट-पलट सब  खोले 
समझ न इसको राख बुझी तुम, आग भरा इक गोला है 
नव-संवत यह साल नया है, अम्बर का नव चोला है

Today is the new Vikrami samvat, the universe seems new
Dipped in to the colour of devotion everyone is singing O’Mother

The world seems to be changed that’s why everyone is calling
O’ Godess Durga, mind is asking why you have abandoned me?

I lose concentration every now and then as am innocent
Today is the new Vikrami samvat, the universe seems new
Purify my mind and take away all the sufferings, the world is urging
Destabilised mind has tired of flying and flying
Which door now I should knock, have been asked to stay at home
Today is the new Vikrami samvat, the universe seems new
Someone should tell now where the world has erred
Completely reveal the mystery of darkness one by one
Don’t treat it as ash, it is a canon filled with fire
Today is the new Vikrami samvat, the universe seems new

लगता है कोरोना अब जाने लगा है

  लगता है कोरोना अब जाने लगा है बेचैनी सी हर तरफ छाने लगी है  बंदिशें अब यंत्रणा लगने लगी है  बादल निराशा के गहराने लगे हैं  सड़कों पर वाहन फ...